HISTORY OF HOMOEOPATHY: होम्योपैथी का इतिहास और विकास एक लंबी यात्रा है, जिसमें इसे विभिन्न देशों और संस्कृतियों में अपनाया गया है। आज भी यह चिकित्सा पद्धति विभिन्न विवादों के बावजूद विश्व भर में प्रचलित है। इस चिकित्सा पद्धति को कई देशों ने बैन भी करके रखा है। इस चिकित्सा पद्धति ने कई मरीजों की पुरानी-से-पुरानी बिमारी को ठीक किया है और कई ऐसी बीमारियों को भी ठीक किया है जिसका एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में कोई इलाज ही नहीं है।
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हाइलाइट्स
प्राचीन समय में भारत में जब कोई बीमार हो जाता था तो वह आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के सेवन से पुनः ठीक हो जाता था। फिर आया समय आधुनिक युग का और दुनियाँ में एलोपैथी नाम की एक नई चिकित्सा पद्धति आई और आते ही इसने पूरी दुनियां को अपनी शरण में ले लिया और लेती भी कैसे नहीं इस पद्धति में कई रोगों का उपचार मिनटों में जो होने लगा और साथ ही इस पद्धति में पैनकिलर जैसी दवाइयाँ भी थी।
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इसी लिए इस चिकित्सा पद्धति ने खूब नाम बटोरा हाँ वो बात अलग है कि इस चिकित्सा पद्धति से इलाज लेने पर साइड इफेक्ट(मूल रोग का निवारण और नए रोग का आगमन) भी होता है। जिस समय एलोपैथी चिकित्सा पद्धति का जन्म हुआ उसी समय होम्योपैथी नाम की भी चिकित्सा पद्धति का भी जन्म हुआ परन्तु उस समय लोगों ने एलोपैथी को ज्यादा तवज्जो दी और यह पूरी दुनियां में छा गई जबकि होम्योपैथी का धीरे-धीरे ही सही उचित विकास होता गया और आज होम्योपैथी ने भी दुनियाँ में अपनी छाप छोड़ी है।
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वर्तमान समय में अगर हमको कोई बिमारी हो जाती है तो हमारे पास मुख्य रूप से 3 तरह की चिकित्सा पद्धति है। 1). आयुर्वेदिक 2). एलोपैथिक और 3). होम्योपैथिक
आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के विषय में हम बाद में बात करेंगें आज हम आपको होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के बारे में सब कुछ काफी कुछ विस्तार से बताने जा रहे हैं। तो चलिए शुरू करते हैं।
होम्योपैथी का प्रारंभिक विकास-
होम्योपैथी की शुरुआत 18वीं शताब्दी के अंत में जर्मनी में हुई थी। इसके जनक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुएल हैनिमैन (Samuel Hahnemann) को माना जाता है।
सैमुएल हैनिमैन का योगदान-
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सैमुएल हैनिमैन एक चिकित्सक और केमिस्ट थे। उन्होंने होम्योपैथी का सिद्धांत “समानता के नियम” (Law of Similars) पर आधारित किया, जिसका कहना है कि “सम का इलाज सम से किया जाना चाहिए” (Similia Similibus Curentur)। हैनिमैन ने अपनी किताब “ऑर्गेनन ऑफ मेडिसिन” (Organon of Medicine) में होम्योपैथी के सिद्धांत और उपचार के तरीके विस्तृत रूप से लिखे।
होम्योपैथी का सिद्धांत-
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समानता का नियम (Law of Similars): इस नियमानुसार वह पदार्थ जो स्वस्थ व्यक्ति में किसी बीमारी के लक्षण पैदा करता है, वही पदार्थ उस बीमारी के लक्षणों का इलाज कर सकता है।
सर्वोच्च न्यूनतम खुराक (Minimum Dose): इस पद्धति में दवाइयों को उच्च मात्रा में नहीं, बल्कि न्यूनतम मात्रा में दिया जाता है ताकि शरीर पर कोई विषाक्त प्रभाव न हो।
सिंगल रेमेडी (Single Remedy): प्रत्येक रोगी को उसकी पूरी स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक ही दवा दी जाती है।
यह भी पढ़ें-
होम्योपैथी का प्रचार-प्रसार-
जर्मनी: हैनिमैन के शिष्यों ने होम्योपैथी का प्रचार-प्रसार जर्मनी में किया।
यूरोप: 19वीं शताब्दी में यह चिकित्सा पद्धति यूरोप के अन्य देशों में फैल गई।
अमेरिका: 19वीं शताब्दी के मध्य में, होम्योपैथी ने अमेरिका में भी अपनी जगह बनाई। 1844 में अमेरिका में होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई।
भारत: भारत में होम्योपैथी का प्रवेश 19वीं शताब्दी के अंत में हुआ। 20वीं शताब्दी में, होम्योपैथी ने भारत में प्रमुखता हासिल की और सरकार ने इसे चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता दी।
होम्योपैथी का आधुनिक विकास-
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शोध और विकास: होम्योपैथी पर विभिन्न अनुसंधान और अध्ययन होते रहे हैं, जो इसके प्रभावकारिता और सुरक्षा को साबित करने का प्रयास करते हैं।
प्रयोग और शिक्षा: विभिन्न होमियोपैथिक कॉलेज और संस्थान होम्योपैथी की शिक्षा प्रदान करते हैं और इसे प्रैक्टिस करते हैं।
आलोचना और विवाद-
विज्ञानिक दृष्टिकोण: कई वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञ होम्योपैथी की प्रभावकारिता पर संदेह करते हैं तथा इसे प्लेसिबो इफ़ेक्ट मानते हैं।
लोकप्रियता: हालांकि, कई मरीज और चिकित्सा विशेषज्ञ होम्योपैथी को एक प्रभावी और सुरक्षित चिकित्सा पद्धति मानते हैं।
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