Saikhom Mirabai Chanu: साइखोम मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष, समर्पण और असीम धैर्य का प्रतीक है। उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि असंभव कुछ भी नहीं होता, बशर्ते हमारे अंदर उसे पाने की सच्ची लगन और मेहनत करने की क्षमता होनी चाहिए। आइए उनके जीवन को और गहराई से समझते हैं-
हाइलाइट्स
साइखोम मीराबाई चानू का प्रारंभिक जीवन-
साइखोम मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपोक काकचिंग गाँव में हुआ था। उनके परिवार कि आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी। उनके पिता साइखोम कृति मेइतेई एक छोटे किसान थे और उनकी मां तोम्बी लेइमा घर के कामकाज के अलावा लकड़ी बीनने का काम करती थीं। मीराबाई के पांच भाई-बहनों में से वे सबसे छोटी हैं।
घर से 22 किलोमीटर दूर जातीं थी ट्रेनिंग के लिए-
बचपन में, साइखोम मीराबाई चानू को अपने गाँव से 22 किमी दूर इंफाल जाना पड़ता था, क्योंकि उनके गाँव में भारोत्तोलन की सुविधाएं नहीं थीं। इस यात्रा में काफी कठिनाईयां थीं, लेकिन मीराबाई के अंदर का जुनून और उनके परिवार का समर्थन उनके लिए प्रेरणा का काम करता रहा।
प्रारंभिक करियर- (Saikhom Mirabai Chanu)
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मीराबाई ने 12 साल की उम्र में भारोत्तोलन शुरू किया और जल्द ही उनके कोच, नरेंद्र कुमार, ने उनके अद्वितीय कौशल को पहचान लिया। नरेंद्र कुमार ने मीराबाई को शुरुआती प्रशिक्षण दिया और उनके करियर की नींव रखी।
2011 में, मीराबाई ने राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद, उन्होंने 2013 में राष्ट्रीय सीनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता-
2014 में, मीराबाई ने ग्लासगो में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक जीता। इस सफलता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और कई लोग साइखोम मीराबाई चानू को जानने लगे। लेकिन उनकी असली पहचान तब बनी जब उन्होंने 2017 में विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 48 किलोग्राम वर्ग में 194 किलोग्राम (स्नैच में 85 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 109 किग्रा) वजन उठाकर यह उपलब्धि हासिल की।
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साइखोम मीराबाई चानू का ओलंपिक खेल प्रदर्शन-
मीराबाई चानू का सबसे बड़ा सपना ओलंपिक में पदक जीतना था। 2016 के रियो ओलंपिक में, वह पदक जीतने में असफल रहीं और अपने प्रदर्शन से निराश हुईं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 2021 के टोक्यो ओलंपिक में, उन्होंने 49 किलोग्राम वर्ग में 202 किलोग्राम (87 किग्रा स्नैच और 115 किग्रा क्लीन एंड जर्क) वजन उठाकर रजत पदक जीता। इस जीत ने उन्हें भारत की सबसे प्रमुख महिला भारोत्तोलकों में से एक बना दिया।
चुनौतियाँ और संघर्ष-
मीराबाई की यात्रा में कई चुनौतियाँ आईं। 2018 में, उन्हें पीठ की चोट का सामना करना पड़ा, जिसके चलते उन्हें काफी समय तक खेल से दूर रहना पड़ा। इस दौरान, उन्होंने मानसिक और शारीरिक रूप से खुद को मजबूत किया और वापसी की। उनकी माँ का संघर्ष भी उनके लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। उनकी माँ ने आर्थिक तंगी के बावजूद हमेशा मीराबाई का समर्थन किया।
पुरस्कार और सम्मान-
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मीराबाई चानू को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है।
• राजीव गांधी खेल रत्न: यह भारत का सबसे बड़ा खेल सम्मान है, जिसे मीराबाई को 2018 में प्रदान किया गया।
• पद्म श्री: 2018 में उन्हें यह चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दिया गया।
• मणिपुर सरकार द्वारा सम्मान: मीराबाई को मणिपुर सरकार ने भी कई मौकों पर सम्मानित किया है।
निजी जीवन- (साइखोम मीराबाई चानू)
मीराबाई अपने परिवार के बहुत करीब हैं। उनकी सफलता का बड़ा श्रेय उनके परिवार को जाता है, जिन्होंने हर मुश्किल घड़ी में उनका साथ दिया। मीराबाई आज भी अपने गाँव के बच्चों को प्रेरित करने और उन्हें खेलों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
साइखोम मीराबाई चानू की वर्तमान स्थिति-
मीराबाई चानू लगातार अपने प्रदर्शन में सुधार कर रही हैं और भविष्य में और भी बड़ी उपलब्धियों की ओर अग्रसर हैं। उनकी मेहनत, समर्पण और संघर्ष की कहानी न केवल खेल प्रेमियों के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को साकार करना चाहता है। मीराबाई चानू की कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद, अगर हमारे पास दृढ़ संकल्प और मेहनत करने की इच्छा हो, तो हम किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। उनकी अदम्य इच्छा शक्ति और अनुकरणीय धैर्य ने उन्हें भारत का गौरव बना दिया है।
तो यह थी साइखोम मीराबाई चानू के जीवन की पूरी कहानी। आपको यह पोस्ट कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं।